मंगलवार, 11 मई 2010

किताबें

अब रह लेती हैं मेरी किताबें
उन कोमल हाथों के स्पर्श से
पुलकित हुए बिना भी
बस की सख्त रेलिंग पर
गंदे से झोले या बड़े से सूटकेस के साथ
कर लेती हैं वास
निश्वास
क्योंकि किताबें अब सिर्फ
किताबें रह गयीं हैं
जो जिया नहीं करतीं
और चिठ्ठियों का आदान प्रदान
किया नहीं करतीं.

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