मंगलवार, 11 मई 2010

अब सुख दे

क्षण क्षण को,
इस मन को,
आनंदमयी कर दे;
सुख नभ भर कर
अब दे.

अंतर की ज्वाला है,
लम्बी एक माला है,
कण भर की तृप्ति को,
सदियों तक पाला है,

अब जब दे, बस सुख दे ,
सागर दे सूरज दे;
अंतर्मन तर कर दे,
मधुक्षण अब
भर-भर दे.

और फिर जब मधुक्षण दे
क्षण क्षण को
युग का - सा
कर दे.

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