बहुत तन्हा हूँ मैं इस दौर-ए-जहाँ में अब तो ,
बहुत याद आता है अब दौर उस जवानी का.
कभी तंग जेब होकर फिरना वो मुतमईं सा ,
मेरा वक़्त-ए-मुफ़लिसी अब मुझे याद आ रहा है
तू तेरी याद तेरा ग़म
बस; अब इसके मायने हैं हम
मैंने सोचा के कहीं दूर तुझसे जा के रहूँ,
तेरी ज़मीन तेरा आसमान तेरा जहां.
जिधर भी देखता हूँ , तू -तू है ;
मुझे बता के कहाँ पर नहीं है तेरा निशां..