मंगलवार, 5 अक्तूबर 2010

फुटकर शेर

बहुत तन्हा हूँ मैं इस दौर-ए-जहाँ में अब तो ,
बहुत याद आता है अब दौर उस जवानी का.


कभी तंग जेब होकर फिरना वो मुतमईं सा ,

मेरा वक़्त-ए-मुफ़लिसी अब मुझे याद आ रहा है



तू तेरी याद तेरा ग़म

बस; अब इसके मायने हैं हम



मैंने सोचा के कहीं दूर तुझसे जा के रहूँ,

तेरी ज़मीन तेरा आसमान तेरा जहां.

जिधर भी देखता हूँ , तू -तू है ;

मुझे बता के कहाँ पर नहीं है तेरा निशां..