बुधवार, 9 मार्च 2011

मुझको वो मेरी तरह लगता है

बोलता है तो बुरा लगता है

मुझको वो मेरी तरह लगता है



कैसी चुप्पी है जबाँ पे उनकी

मामला आज टला लगता है



मुस्कुरा देता है जब देख अपनी बेटी को

तब वो इंसान भला लगता है



खूबसूरत , गुल ए गुलजार , या के जान मेरी

एक चेहरा है जो मुझको बला लगता है



ना समझते हैं वो आँख के इशारों को

हमको उनका ये मरासिम तो नया लगता है



यूँ नहीं आती हैं ये लाल लकीरें अक्सर

आज आँखों में मुझे तेरी धुंआ लगता है