गुरुवार, 29 जुलाई 2010

विरह अगन

मैं जल रहा
दिए की तरह
स्वदीप्त हो रहा
आभा है - तुम्हारी स्मृतियों
भरे वो पल
आशा है - तुम आओगी ,
और सहलाओगी
कोमल से
मन के कोंपल.

मैं जल रहा
वस्तुतः
तुम्हारी ही तो स्मृत्तियों में
और सोचता कि
तुम आओगी.
बन प्रेम पवन
मुझे छू जाओगी
इस दाह को बुझाओगी.