मंगलवार, 11 मई 2010

रात के पिछले पहर

जब वो मुझको याद आई रात के पिछले पहर,
जिंदगी फिर मुस्कुराई रात के पिछले पहर .

चांदनी शरमा रही थी अपनी पलकों को झुका ,
चाँद ने फिर अंख दबाई रात के पिछले पहर .

जागना पागल-सा फिरना बडबडाना बस यूँ हीं,
ये मुहब्बत संग लायी रात के फिछले पहर .

लौट आया आज जब वो घर पे साढ़े सात को,
उसकी बीवी मुस्कुराई रात के पिछले पहर .

बेटा ज्यादा नंबरों के वास्ते घर से गया था ,
लौट के फिर लाश आई रात के पिछले पहर .

रात भर जागा था बापू अपने बिस्तर पर यूँ हीं,
कल भी बेटी late आई रात के पिछले पहर .

आइना देखा तो मुझको तेरी सूरत ही दिखी ,
मेरी हसरत रंग लायी रात के पिछले पहर .

जन्नतों की हो गयी ताबीर उसको बारबां जब,
उसकी बेटी मुस्कुराई रात के पिछले पहर .

कितनी लज्ज़तदार थी वो एक रोटी जो मुझे,
माँ ने हाथों से खिलाई रात के पिछले पहर .

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