मंगलवार, 11 मई 2010

समय चक्र

ये सच है न होगा साथ
वो कल
लेकिन आज ही की तरह आयेंगे
आ के गुज़र जायेंगे
ये पल
आज जब उसे अपने करीब पाता हूँ ,
किंचित सा घबराता हूँ
के कल
जब वो साथ न होगा साथ होगा
मेरा एकाकीपन, अपने में
उसकी यादों को समेटे हुए
यादें उन अजीज़ पलों की
जो अब भी गुज़रते जा रहे हैं
मुस्कुराते मुहं चिढाते
मैं प्रयास करता हूँ इन्हें पकडे रखने का किन्तु
असफल
हाय ये पल …………..


फिर सोचता हूँ .....

जब वो न होगा साथ
क्या वो साथ तब न होगा ?
न होगा नींदों में मेरी, या ख्वाबों में वो न होगा
न होगा दिन मेरे या रातों में वो न होगा
न होगा चुप्पी में मेरी या बातों में वो न होगा
साथ जब न होगा वो, साथ तब भी वो मेरे होगा

और फिर ....................

शायद ...................

पतझड़ के बाद पुनः विस्फुतित होंगे
नव किसलय
विरह त्रिशाग्नी बन प्रेम की ठंडी पवन


गाएगी प्रेम लय. ................

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