बुधवार, 12 मई 2010

बात करते हो

किस ज़माने की बात करते हो
आजमाने की बात करते हो

दर्द की हद से हम गुज़र भी चुके
तिलमिलाने की बात करते हो

रो चुके हाल-ऐ-दिल सर-ऐ-बाज़ार
तुम जताने की बात करते हो

इस चमन में युगों से सूखा है
ग़ुल खिलाने की बात करते हो

मैं नहीं हूँ किसी से रूठा हुआ
क्यों मानाने की बात करते हो

है अँधेरा बहुत सियाह यहाँ
घर जलाने की बात करते हो

आ भी जाते हो चुप से ख्वाबों में
और न आने की बात करते हो

है उदासी अब तो मेरा सबब
मुस्कुराने की बात करते हो

खुद गरेबाँ में झांक कर देखो
क्यों ज़माने की बात करते हो

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