किस ज़माने की बात करते हो
आजमाने की बात करते हो
दर्द की हद से हम गुज़र भी चुके
तिलमिलाने की बात करते हो
रो चुके हाल-ऐ-दिल सर-ऐ-बाज़ार
तुम जताने की बात करते हो
इस चमन में युगों से सूखा है
ग़ुल खिलाने की बात करते हो
मैं नहीं हूँ किसी से रूठा हुआ
क्यों मानाने की बात करते हो
है अँधेरा बहुत सियाह यहाँ
घर जलाने की बात करते हो
आ भी जाते हो चुप से ख्वाबों में
और न आने की बात करते हो
है उदासी अब तो मेरा सबब
मुस्कुराने की बात करते हो
खुद गरेबाँ में झांक कर देखो
क्यों ज़माने की बात करते हो
Very nice. I liked the flow of your poetry.
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