शुक्रवार, 28 जनवरी 2011

वो चुप है,कोई राज़ है इसमें गहरा
वर्ना अब तक चाल चल गया होता


कैसे कैसे खरीदने वाले
और होता ,फिसल गया होता

ये मेरे हौसलों की गर्मी है
वर्ना सूरज तो ढल गया होता

बंद हैं मैकदे और मय खारी
वरना गिर के संभल गया होता

ये तेरा इश्क है के ज़िंदा हूँ
वरना ये दम निकल गया होता


गर मरासिम की समझता कीमत
यूं न आँखों में खल गया होता

पाल रख्खी हैं बुरी आदतें खुद में वरना
मुझसे अल्लाह जल गया होता .

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