कल फिर रहा मैं खोजता अपने वजूद को
कल फिर मेरी तलाश में भटका मैं दर ब दर
पूछा था उसने प्यार से क्या चाहिए हुज़ूर
इसका जवाब सोचता बैठा मैं कुछ पहर
शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011
शनिवार, 12 फ़रवरी 2011
हवा हूँ मैं
आग हूँ, मिट्टी हूँ, पानी हूँ, हवा हूँ मैं
मैंने कब किस से कहा है , के खुदा हूँ मैं ?
ज़र्द चेहरों में चमकता हुआ है रूख़ मेरा
मरा हुआ हूँ मैं भी मगर जुदा हूँ मैं
नहीं मुझे नहीं मंजूर हैं ये तेरे हिसाब
ये अब चाहे तो तू कह ले के सिरफ़िरा हूँ मैं
ये सारे रेंगते हैं कोहनियों पे घुटनों पे
अभी भी पैरों पे अपने मगर खड़ा हूँ मैं.
मैंने कब किस से कहा है , के खुदा हूँ मैं ?
ज़र्द चेहरों में चमकता हुआ है रूख़ मेरा
मरा हुआ हूँ मैं भी मगर जुदा हूँ मैं
नहीं मुझे नहीं मंजूर हैं ये तेरे हिसाब
ये अब चाहे तो तू कह ले के सिरफ़िरा हूँ मैं
ये सारे रेंगते हैं कोहनियों पे घुटनों पे
अभी भी पैरों पे अपने मगर खड़ा हूँ मैं.
सदस्यता लें
संदेश (Atom)